मिरी अम्मी मुझे इस्कूल जाने के लिए तय्यार करती थी मिरे जूते मिरा बस्ता मिरी वर्दी सभी कुछ उस की अलमारी में रक्खा था मिरे बस्ते में रक्खा लंच बिस्कुट टॉफ़ियाँ और टोस्ट जब यूँही बिना खाए कभी घर लौटता तो एक ग़ुस्से से भरी आवाज़ और फिर चंद लम्हों के लिए वो रूठ जाती थी मगर जब वो मिरी आँखों में आँसू देखती तो मान जाती थी मैं डरता था कभी बाज़ार में जाता तो उंगली थाम रखता था मुझे लगता अगर मुझ से ये उंगली छूट जाएगी तो मैं खो जाउँगा खोने का डर चालीस सालों तक मिरे दिल में रहा और मैं ने इक लम्हा भी वो उँगली नहीं छोड़ी मगर इक रोज़ जब उस ने मिरे मज़बूत हाथों में ये दुनिया छोड़ दी मेरी भी उँगली कट गई ये ज़िंदगी जो एक दिल में मुजतमा' थी सैंकड़ों टुकड़ों के अंदर बट गई