कहाँ गया वो ज़माना कि जिस की याद में आज भुलाए बैठा हूँ ख़ुद को पता नहीं मिलता गई कहाँ है वो अब सूरतें मोहब्बत की ज़माने भर में कहीं नक़्श-ए-पा नहीं मिलता मैं पूछूँ किस से पता और कहाँ कहाँ ढूँडूँ वहाँ का कोई भी आया गया नहीं मिलता वो अस्पताल की शब भी थी क्या क़यामत की वहाँ क़फ़स से जो ताइर उड़ा नहीं मिलता नहीफ़ बाज़ू थे मेरे लिए हिसार-ए-अमाँ मज़ा कहीं भी उस आग़ोश का नहीं मिलता वो बुझती आँखें थी मेरे लिए चराग़-ए-हयात निगाह-ए-मेहर का अब वो दिया नहीं मिलता तमीज़ कैसे करूँ रहज़न-ओ-रफ़ीक़ में अब रह-ए-हयात का वो रहनुमा नहीं मिलता बस एक दम से वो बदली हवा ज़माने की कि शैख़ मिलते हैं दिल बा-सफ़ा नहीं मिलता बला का शोर है उल्फ़त के मय-कदे में मगर शराब मिलती है लेकिन नशा नहीं मिलता हुई है रूह वो अब जज़्ब-ए-रूह-ए-पाक-ए-अज़ीम मिला जो ज़ात में उस की जुदा नहीं मिलता वो गोया अब्र का साया था ले उड़ी जो हवा बिखर के फूल का जैसे पता नहीं मिलता वो एक नग़्मा था गुम हो गया फ़ज़ाओं में कि जैसे बहर में क़तरा गिरा नहीं मिलता तलाश उन की यहाँ है 'हबीब' ला-हासिल कि चश्म-ए-तर से जो आँसू गिरा नहीं मिलता