अराबची सो गया है तूलानी फ़ासलों की थकन से मग़्लूब हो गया है ख़बर नहीं है उसे कहाँ है बस एक लम्बे कटे-फटे नातराश रस्ते पे चोबी गाड़ी अज़ल से यूँही अबद की जानिब रवाँ-दवाँ है ज़रा से झटके से चरचराती है जब तो बोसीदगी की लाखों तहों में लिपटा हर एक ज़ी-रूह चौंकता है अराबची ख़्वाब देखता है वो शाह-ज़ादी का हाथ थामे सुनहरी रथ में सवार हो कर अजब जहानों में शुबह ज़मानों में खो गया है अराबची सो गया है.....!