असरार-ए-ख़ामुशी By Nazm << चराग़-ए-लम्हा सीप >> निगार-ए-गेती के पैरहन पर अजीब धब्बे से पड़ रहे हैं शिकस्ता दीवार जिस तरह से फ़सुर्दा साए बना रही हो मुहीब ज़ुल्मत अजीब मक़्तल न जाने असरार-ए-ख़ामुशी में हुजूम-ए-वहशत की तीरगी में उगेगा कब आगही का सूरज Share on: