जाने क्या बात है क्यूँ नींद नहीं आती है रात बोझल है सितारों की नज़र बैठी हुई शब के ख़ामोश मनाज़िर हैं अजब ख़ौफ़-ज़दा बे-अमाँ जाने किसे ढूँढने की ज़िद में अबस दूर उफ़क़ पार कहीं दूर निकल जाती है सुब्ह उठती है तो बचपन की उमंगें ले कर आज आएगा कोई रात गई बात गई दिन गुज़रता है किसी आस के पहलू में रवाँ ख़ल्वतें महफ़िल-ए-रंगीन में ढल जाती हैं आहें नग़्मों की सदाओं में निखर जाती हैं शाम लौ देती हुई यास की रानाई में कौन आता है ख़यालों के सिवा इस घर में किस को आना है यहाँ कौन यहाँ आएगा शाम से बात बनाते हुए दिन का ढलना रात का शाम से रंगीन कहानी सुनना रात की नींद से होती हुई चीमा-गोइ पैकर-ए-नींद का टूटा हुआ अलसाया बदन रोज़ होता है यूँ ही मुद्दतें गुज़रीं लेकिन काश ऐसा हो कभी नींद न करवट बदले और तुम दस्तकें देते रहो हम आए हैं