तू ने मेरे दुख की ख़ातिर कितने रंज सहे अपनी गोद में तू ने मुझ को अपने लहू की चाँदनी बख़्शी मैं इक चाँद बना जिस ने धरती से ये घोर भयानक अँधियारों का ख़ौफ़ मिटाया जब तू ज़ीनत हजला बनी तू ने अपने ख़ून की आतिश मुझ को बख़्शी मैं इक सूरज बन कर चमका जिस की धूप में मेरी रूह का क़ैदी शाहीं नाग के फंदे से छूटा तू जब आई मेरे जिगर की ठंडक बन कर तू ने मेरी आग पे अपने आँसू बिखेरे मेरी आग में फूल उगे मैं इक शाइ'र अपने फ़न की अफ़्शाँ ले कर तेरी माँग सजाने आया