सुनो, बिंत-ए-हव्वा! मैं आदम का बेटा हूँ आओ तसल्ली से निमटाएँ झगड़ा ये हव्वा की इज़्ज़त का हव्वा बना कर दिखाया गया है मुझे तुम से नाहक़ लड़ाया गया है मैं आदम का बेटा हूँ और जानता हूँ कि मर्द और औरत ही फ़ितरत की गाड़ी के पहिए हैं दो और दोनों ही लाज़िम हैं दोनों ज़रूरी न हो एक भी तो कहानी अधूरी मुझे ये ख़बर है कि मर्द और औरत मोहब्बत के सिक्के के दो रुख़ हैं और दोनों रुख़ हैं ज़रूरी न हो एक भी तो कहानी अधूरी तुम और मैं बहुत देर से हम सफ़र हैं तुम और मैं इकट्ठे ही जन्नत के घर से निकाले गए थे और इस ख़ाक-दाँ में उछाले गए थे चलो मैं ने माना कि शहर-ए-हवस में हैं काफ़ी दरिंदे जिन्हों ने सदा इब्न-ए-आदम की शोहरत को पामाल रक्खा मगर वो दरिंदे तो गिनती के हैं अनगिनत मर्द वो हैं जिन्हों ने तुम्हें शान-ओ-तकरीम बख़्शी कभी बाप बन कर कभी भाई बन कर कभी बेटा बन कर वही बाप जिस ने तुम्हारे लिए अपनी जाँ बेच कर भी खिलौने ख़रीदे वही भाई जिस ने तुम्हारे दुपट्टे को क़ुरआन की तरह पाकीज़ा जाना वही बेटा जिस ने हमेशा तुम्हारे ही पैरों तले अपनी जन्नत तलाशी ये सब मर्द हैं और तुम्हारे मुहाफ़िज़ गली में अगर इक दरिंदे ने तुम पर कसा कोई जुमला कई अजनबी मर्द भी तब तुम्हारी हिफ़ाज़त को आए कोई मर्द तेज़ाब-गर्दी को आया तो कितने ही मर्दों ने तुम को बचाया सुनो बिंत-ए-हव्वा बहन भी हो बेटी भी हो माँ भी हो तुम मिरे सारे दर्दों का दरमाँ भी हो तुम मगर ये भी सच है तुम्हारे लिए मैं शरीक-ए-हयात ओ शरीक-ए-सफ़र हूँ शरीक-ए-ग़म-ए-जां शरीक-ए-शब-ए-ग़म शरीक-ए-सहर हूँ तुम्हारा हर इक अश्क है मेरा आँसू तुम्हारी हँसी मेरी अपनी हँसी है चलो सुल्ह कर लें चलो अपने बच्चों की आइंदा नस्लों की ख़ातिर मोहब्बत की आइंदा फ़स्लों की ख़ातिर झगड़ना करें ख़त्म और सुल्ह करें चलें आज शाना-ब-शाना नई ज़िंदगी के नए मार्च में हम कि जिस में चलेगी बराबर बराबर तुम्हारी भी मर्ज़ी हमारी भी मर्ज़ी