औरत

मुजस्सम इश्वा-ओ-अंदाज़ भी है
मगर औरत जहान-ए-राज़ भी है
सितम-आराईयाँ तस्लीम लेकिन
निहायत मुख़लिस-ओ-दमसाज़ भी है
शक्त-ए-आरज़ू की बात कैसी
हुजूम-ए-आरज़ू का राज़ भी है
अगर कोताह-नज़री हो न हाइल
तो शायद मरकज़-ए-पर्वाज़ भी है
कहीं अफ़्साना-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत
कहीं रूदाद-ए-सोज़-ओ-साज़ भी है
यही तक़्दीस-ए-मर्यम ज़ब्त-ए-सीता
यही अय्यार-ओ-शाहिद-बाज़ भी है
इसी से रौनक़-ए-हर-अंजुमन भी
यही हर फ़ित्ने का आग़ाज़ भी है
यही गंजीना-ए-ज़ौक़-ए-निहानी
मशिय्यत का यही एजाज़ भी है
जहाँ है सर-ब-सज्दा इश्क़ अब तक
यही वो बारगाह-ए-नाज़ भी है
फ़ज़ा-ए-अल-जज़ाइर जिस पे क़ुर्बां
इक ऐसी पुर-असर आवाज़ भी है
ग़र्ज़ औरत जहान-ए-आब-ओ-गिल में
ज़माना भी ज़माना-साज़ भी है
This is a great औरत पर शायरी. True lovers of shayari will love this औरत की शायरी.

Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close