खिलाड़ियों के ख़ुद-नविश्त दस्तख़त के वास्ते किताबचे लिए हुए खड़ी हैं मुंतज़िर हसीन लड़कियाँ ढलकते आँचलों से बे-ख़बर हसीन लड़कियाँ मुहीब फाटकों के डोलते किवाड़ चीख़ उठे उबल पड़े उलझते बाज़ुओं चटख़ती पिस्लियों के पुर-हिरास क़ाफ़िले गिरे बढ़े मुड़े भँवर हुजूम के खड़ी हैं ये भी रास्ते पे इक तरफ़ बयाज़-ए-आरज़ू ब-कफ़ नज़र नज़र में ना-रसा परस्तिशों की दास्ताँ लरज़ रहा है दम-ब-दम कमान-ए-अबरुवाँ का ख़म कोई जब एक नाज़-ए-बे-नियाज़ से किताबचों पे खिंचता चला गया हुरूफ़-ए-कज-तराश की लकीर सी तो थम गईं लबों पे मुस्कुराहटें शरीर सी किसी अज़ीम शख़्सियत की तमकनत हिनाई उँगलियों में काँपते वरक़ पे झुक गई तो ज़र-निगार पल्लुवों से झाँकती कलाइयों की तेज़ नब्ज़ रुक गई वो बोलर एक मह-वशों के जमघटों में घिर गया वो सफ़्हा-ए-बयाज़ पर ब-सद-ग़ुरूर किल्क-ए-गौहरीं फिरी हसीन खिलखिलाहटों के दरमियाँ विकट गिरी मैं अजनबी मैं बे-निशाँ मैं पा-ब-गिल न रिफ़अत-ए-मक़ाम है न शोहरत-ए-दवाम है ये लौह-ए-दिल ये लौह-ए-दम न इस पे कोई नक़्श है न इस पे कोई नाम है