तुम्हारे आने से पहले कुंजी ताले में घूमती है तुम्हारे दाख़िल होने की आवाज़ आती है तुम धमाके-दार पाँव रखते हुए आहिस्ता से या कभी तेज़ी से कमरे में कहीं किसी तरफ़ जाते हुए फिर थोड़ी दैर तक वहीं खड़े रहते हो शायद मेरे साकित जिस्म को देखते हो जो तुम्हारी हरकत की आवाज़ पर कान लगाए पड़ा होता है कभी बे-ख़बरी में कभी आगाह फिर तुम पानी पीते हो या नहीं पीते थोड़े वक़्फ़े तक ख़ामोशी रहती है घड़ी की टिक टिक के दरमियान तुम्हारे निवाले चबाने की आवाज़ सुनाई देती है और कभी ये आवाज़ मेरे जिस्म के गर्द घूमने लगती है और में बे-ख़बर और कभी आगाह तुम्हारी निवाले चबाने की आवाज़ में शामिल हो जाती हूँ