बार एक क़तरा आँसू का By Nazm << तुम्हारे लिए सब्ज़ से सफ़ेद में आने का... >> एक सच्ची कहानी जब धकेल दी जाती है किसी फ़िल्मी क्लाइमेक्स की तरफ़ अपना मुँह छुपा लेता है सूरज फीके चाँद की ओट में एक दूसरे के गिर्द घूमते कबूतर मग़्मूम हो कर बैठ जाते हैं परों में मुँह दे कर और धरती तय्यारी करती है बार उठाने की एक क़तरा आँसू का Share on: