मैं हूँ इक बच्चा मज़दूर बचपन से हूँ कोसों दूर सुब्ह से काम पे जाता हूँ शाम को वापस आता हूँ मैं भी पढ़ना चाहता हूँ आगे बढ़ना चाहता हूँ खेल कूद को वक़्त नहीं क्या जी मैं बद-बख़्त नहीं चाहता हूँ ग़ुब्बारे लूँ हम-सिन यारों से खेलूँ लेकिन क्या कर सकता हूँ दिन भर काम पे रहता हूँ किस से दिल की बात कहूँ कब तक मैं ख़ुद पे रोऊँ हालत से मजबूर हूँ मैं और बच्चा मज़दूर हूँ मैं काश कोई मुझ को समझे मुझ से न बचपन छीने