छूती मैं इस मस्त पवन को काश मैं कोई पंछी होती आसमाँ होता साएबाँ मेरा किसी शजर पर रहती होती इन फूलों से उन कलियों से अपनी बातें कहती होती नील गगन में पर फैलाए पहरों बस मैं उड़ती होती मेरे होते दोस्त निराले मोर कबूतर तीतरी होती उन के साथ मैं हँसती बोलती दाना दुन्का चुगती होती कितनी ख़ुश-क़िस्मत है चिड़िया काश मैं उस के जैसी होती