बचपन के दुख कितने अच्छे होते थे तब तो सिर्फ़ खिलौने टूटा करते थे वो ख़ुशियाँ भी जाने कैसी ख़ुशियाँ थीं तितली के पर नोच के नाचा करते थे पाँव मार के ख़ुद बारिश के पानी में अपनी नाव आप डुबोया करते थे छोटे थे तो मक्र-ओ-फ़रेब भी छोटे थे दाना डाल के चिड़िया पकड़ा करते थे अपने जल जाने का भी एहसास न था भड़के हुए शो'लों को छेड़ा करते थे आज भी उन की यादें नींद उड़ाती हैं बचपन में जो हम ने सपने देखे थे अब तो एक आँसू रुस्वा कर जाता है बचपन में जी भर के रोया करते थे