किसी दिन आ पुरानी खाईयों को पार कर के दलदलों में पाँव रक्खें नर्सलों को काट डालें पेश-ए-मंज़र के लिए रस्ता बनाएँ आ किसी दिन धुँद में जकड़ी हुई काँटों भरी ये बाड़ जिस में वक़्त की बिजली रवाँ है जो ज़मीं ओ आसमाँ को काटती है बीच से उस को हटाएँ आ किसी दिन झूलते पुल से उतर कर नक़्शा-ए-तक़वीम में पुर-पेच कोहसारों के अंदर झाग उड़ाती शोर करती बल पे बल खाती नदी में ग़ोता-ज़न हों तैरते जाएँ! किसी दिन आ बड़ा चक्कर लगाएँ!!