बादल झुक आए थे आमों की डाली के नीचे कच्ची मिट्टी सोई हुई थी तेज़ हवा से पत्ते नीचे गिरते थे मैं तन्हा पेड़ के पास खड़ा था सोच रहा था रुख़्सत ऐसी होती है सब कुछ दिल की हांडी में से बाहर आ कर बे-ख़ुश्बू के फूल की सूरत हो जाता है राहें तकती सपने सोती आँखें आँसू भर कर कॉलर पे आ जाती हैं मेंह के पर्दों में से दिल की मिट्टी अपने बोझल सुख़नों के पानी में धुल कर पल के पल अंजान हवा में खो जाती है शाम की बाँहें दस्तक बन कर आती हैं और ख़ुद ही अपने आप हवा की लहरों में खो जाती हैं कोई नहीं है दिल ने अपने सारे काग़ज़ थाम लिए हैं मेंह की बूँदें जिन पे गिरती रहती हैं