बदन से पूरी आँख है मेरी जाओ जा-नमाज़ से अपनी पसंद की दुआ उठा लो हर रंग की दुआ मैं माँग चुकी बाग़बाँ दिल का बीज तेरे पास भी न होगा देखो धुएँ में आग कैसे लगती है मेरे पैरहन की तपिश मिट्टी कैसे जलाती है बदन से पूरी आँख है मेरी निगाह जो तने की ज़रूरत ही क्या पड़ी है मेरी बारिशों के तीन रंग हैं टूटी कमान पे एक निशान ख़ता का पड़ा है हम चाहें तो सूरज हमारी रोटी पकाए और हम सूरज को तंदूर करें फ़ैसला चुका दिया ख़ता अपनी भूल गए नज़र करने आए थे चुटकी भर आँख आँख तेरी गलियों में तो बाज़ार हैं ज़मीन आँख छोड़ कर समुंदर में सो रही जंगल तो सिर्फ़ तलाश है घर तो काएनात के पिछवाड़े ही रह गया शिकार कमान में फँस फँस कर मरा तुम कैसे शिकारी आँखें तेवरों से जल रही हैं जिस्म ज़िंदगी की मुलाज़मत में है तन्हाई कश्कोल है हम ने आँखों से शमशीर खींची और रुख़्सत की तस्वीर बनाई रात गोद में सुलाई और चाँद का जूता बनवाया हम ने राह में अपने पैरों को जना