बनाया था चिड़िया ने इक घोंसला कि वो एक घर के था छत में बना हुए एक बार उस के बच्चे वहाँ खिलाती ग़िज़ा ला के बच्चों को माँ वो बहर-ए-ग़िज़ा थी किसी दिन गई परेशाँ हुई जब वो वापस हुई कि बच्चे तो हैं लेकिन आफ़त ये थी कि बैठा है बच्चों में इक साँप भी परेशान और मुज़्तरिब हो गई बहुत आह-ज़ारी से फ़रियाद की मगर साँप बच्चों को खाने लगा तो उस ने बहुत मिन्नतों से कहा जो तू कर रहा है ये हरकत बुरी ज़रूर इंतिक़ाम इस का लूँगी कभी सुनी जब कि ये साँप ने गुफ़्तुगू लगा कहने हँस कर सताएगी तू वो हूँ मैं बहादुर कि डरता है शेर करेगी भला तू मुझे कैसे ज़ेर ग़रज़ दोनों बच्चों को वो खा गया शिकम-सेर हो कर वहीं सो रहा ये देखा जो चिड़िया ने आँखों से हाल तो फिर साँप पर ग़ुस्सा आया कमाल जुदाई में बच्चों के रोती रही वो इस रंज में जान खोती रही हुई शब चराग़ों में बत्ती पड़ी तो जलती हुई बत्ती ले कर उड़ी जहाँ साँप था छत में सोया हुआ वहाँ उस ने बत्ती को अब रख दिया जो लोगों ने देखा तो घबरा गए कि ऐसा न हो आग छत में लगे कोई आदमी जल्द छत पर चढ़ा लगा साफ़ करने वो जब घोंसला वहाँ उस ने देखा कि है एक मार तो फ़ौरन ही लठ से दिया उस को मार है 'फ़ैज़ी' ये ज़र्बुल-मसल मुस्तनद बदी का हमेशा है अंजाम बद