बगूले By Nazm << बाज़याफ़्त अश्नान >> मिरी आँखों के सहरा में समुंदर था उभरती रक़्स करती डूबती थीं उस में जल-परियाँ जज़ीरे थे ज़मुर्रद के फ़ज़ाएँ वज्द-आवर मुश्क-आगीं अम्बरीं थीं न जाने कौन से आतिश-फ़िशाँ पिन्हाँ थे दामन में ज़माने के समुंदर को बदल कर रख दिया सहरा में ख़्वाबीदा बगूलों ने Share on: