उजले उजले तनावर तनों पर थमे नख़्ल-ज़ार मुंतशिर इन में सीमाब-गूँ नौ-दमीदा हिलाल अन-गिनत बे-करानी के शफ़्फ़ाफ़ ज़ीनों पे वो फ़ासलों का भरम बस्तियाँ दूर दूर आब-गूँ इक धुँदलके में लिपटी फ़ज़ा ख़्वाब-गूँ और नज़र की पहुँच पस्त-ओ-बाला में बे-रोक मैं ने कहा किन के नामों से मंसूब होंगे ये तकिए क़दीम शाइबा सा इक एहसास रफ़्तार का अपने होने न होने का बे-सूद ध्यान अचानक कहीं इक दरिंदे का बैन वहश-आलूद बद-मज़ा बू अमलतास की तेज़ झोंका सा भरता उड़ान झाड़ झंकार के दरमियाँ पर बचाता सिमटता गुज़रता हुआ इक तआ'क़ुब की दहशत कि थम जा कहीं ओढ़ ले अपना रूप एक ज़र्ब-ए-मुसलसल नुमूदार हो जा मगर है कहाँ जो नुमूदार हो अब कि हम इस से आरी हुए ये भुलावा पनह-गाह-ए-इख़्फ़ा का कोताह-दामन गढ़ा कितना पायाब था जब वो मिट्टी नम-आलूद अब तक वो उफ़्ताद-गाह इल्म दार की मैं ने पहचान ली कैसे पहचान ली गर्म छूने में अब तक वो सच और ज़ाइल शिकंजा सा एहसास का रोंगटा रोंगटा चश्म-ए-बेदार और पानी ही पानी जहाँ तक नज़र जाए फैला हुआ डायरी मेरे पुरखों की रूदाद जल-थल ज़मीं आसमाँ के सिवा और कोई क़दम रखने की जा नहीं तेज़ रफ़्तार बच्चा सड़क पार करना कोई खेल है उस का साया बनी मैं उभरती इधर और उधर डूबती