बैसाखी By Nazm << अभी कुछ दिन लगेंगे कीड़े >> अपनी ही वुसअ'तों से तंग आ कर भागता है किनारा लेता है ये समुंदर भी कितना ज़ालिम है फिर भी इस ख़ाक के सफ़र के लिए बादलों का सहारा लेता है कोई कामिल नहीं अज़ीम नहीं Share on: