हर इक साअ'त हर इक नफ़स मैं कि मर रहा हूँ बिखर रहा हूँ किसे ख़बर है कि मैं जो कल था वो अब नहीं हूँ किसे ख़बर है कि मैं जो चंद लम्हे पेशतर था वो अब नहीं हूँ किसे ख़बर है कि मैं जो अब हूँ वो फिर न हूँगा कि मैं जो हर लिखता मर रहा हूँ बिखर रहा हूँ किसे ख़बर है कि ये इमारत मिरे बदन की अज़ीम-तर है कि जो ब-ज़ाहिर क़दीम-तर है खुला है हर एक राज़ मुझ पर अब इस खंडर का तिलिस्म टूटा है बाम-ओ-दर का