अच्छी सीता बन से लौट आई हो लेकिन घर से भी वापस जाना है कहना मानो धर्ती-माँ का चाह बड़ा महँगा सौदा है वो भी राम की जिस ने रावन को जीता है दरिया अपनी ही मौजों से हो जाता है मग़्लूब अक्सर अंदर का तूफ़ान बड़ा है सहरा में खाते हैं बगूले क्या क्या चक्कर हद से ज़ियादा जी का उमडना कब अच्छा है ज़ख़्मों से हैं कितना चूर गरजते बादल कितना भयानक ये शो'ला है तुम पर भी चमकी है बिजली राम का दर्द उमड आया है चाह बड़ा महँगा सौदा है कहना मानो धर्ती-माँ का राज-महल का ऊँचा फाटक बंद हुआ तो बंद हुआ