बंद दरीचे, जो कभी बंद नहीं होते जहाँ किरनों के झाँकने पर पहरे हैं अँधेरी कोठरियों में ज़बाँ ख़ामोश, जिस्म बोलते हैं जब कोई ख़्वाहिश-ज़ादा अपनी बरहना ख़्वाहिश लिए किसी बंद दरीचे का रुख़ करता है तो पाकीज़गी और पैराहन कोने में बैठ कर बैन करते हैं ज़ख़्म-आलूद जिस्म के अंदर चीख़ें कोहराम बरपा कर देती हैं इतनी नहीफ़ चीख़ें कि किसी कान पर वो दस्तक नहीं दे पातीं रोज़ अन-गिनत जिस्म तड़पते हैं और उन में ढेरों ख़्वाहिशें दफ़्न की जाती हैं