बंदर By बचपन, बाल कविता, Nazm << यार परिंदे! दस्तूर साज़ी की कोशिश >> जब घर में आ जाता बंदर कितने रूप दिखाता बंदर चीज़ें तोड़े कपड़े फाड़े ऊधम ख़ूब मचाता बंदर बच्चे रहते सहमे सहमे उन को ख़ूब डराता बंदर छीन के सब ले जाता चीज़ें दिखा दिखा कर खाता बंदर डंडा ले कर मारें उस को फिर तो दौड़ लगाता बंदर Share on: