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बर्फ़ हर आन गिरे जाती है बाम-ओ-दर कूचा ओ मैदाँ चुप हैं रात के साया-ए-लर्ज़ां चुप हैं कोई मोटर कभी भूले से गुज़र जाती है हर क़दम गिनती हुई अपनी चुँधयाई हुई आँखों से वर्ना हर सम्त बस इक आहनी ख़ामोशी है कोई आवाज़ न सरगोशी है और ये दिल भी कि थी गर्मी-ए-बाज़ार जहाँ आज मुद्दत से बयाबान की सूरत चुप है ज़िंदगी है कि किसी तौर कटे जाती है बर्फ़ हर आन गिरे जाती है ये समाँ बर्फ़ से ढक जाएगा राह-रौ रास्ता चलते हुए थक जाएगा उम्र-ए-रफ़्ता के ख़त-ओ-ख़ाल-ए-निहाँ कोई मुश्किल ही से पहचानेगा राज़ सर-बस्ता रहेंगे दिल में किस को ग़म है कि उन्हें जानेगा वक़्त की गिरती हुई बर्फ़ गिरे जाएगी एक धुँदलाई हुई रात कभी आएगी ज़िंदगी यूँही गुज़र जाएगी
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