बरगद का ये बूढ़ा पेड़ जिस के जिस्म की खाल तक अब तो सूख गई है इस के साए में जाने कितने रूमान पले हैं जाने कितने पैमान बंधे हैं इस बरगद के पेड़ को सब हमराज़ बना कर जीवन साथ निभाने का वा'दा करते थे इस बरगद के साए में कितनी छैल-छबेली सुंदर नारी मीत से मिलने की आशा में पहरों बैठी रहती थीं कितने अलबेले शोख़ कनहैया इस बरगद के साए में अपनी नय से मद-भरी आवाज़ का जादू घोलते थे बिरहा-राग को छेड़ के अक्सर फ़र्त-ए-ग़म से अश्क के मोती रोलते थे