आँखें मीचे सोच में गुम धोनी रमाए कोई साधू जैसे बैठा हो बच्चे खेल रहे हैं जिन की चीख़ों से ख़ामोशी के साकिन जौहड़ में हलचल झोंके आते हैं लेकिन ये चुप साधे रहता है मौत भी शायद उस के बुढ़ापे को छूने से डरती है उस का तन माज़ी से बोझल है और हमारे दिन उस के भारी-पन को सहमी सहमी नज़रों से देख रहे हैं उस के पत्तों ने क्यूँ हर कोंपल को ढाँप रखा है उस की शाख़ें क्यूँ मिट्टी में घुस कर जड़ बन जाती हैं
This is a great पेड़ शायरी.