गर्मी की तपिश बुझाने वाली सर्दी का पयाम लाने वाली क़ुदरत के अजाइबात की काँ आरिफ़ के लिए किताब-ए-इरफ़ाँ वो शाख़-ओ-दरख़्त की जवानी वो मोर-ओ-मलख़ की ज़िंदगानी वो सारे बरस की जान बरसात वो कौन-ए-ख़ुदा की शान बरसात आई है बहुत दुआओं के बा'द वो सैकड़ों इल्तिजाओं के बा'द वो आई तो आई जान में जाँ सब थे कोई दिन के वर्ना मेहमाँ गर्मी से तड़प रहे थे जान-दार और धूप में तप रहे थे कोहसार भूबल से सिवा था रेग-ए-सहरा और खौल रहा था आब-ए-दरिया सांडे थे बिलों में मुँह छुपाए और हाँप रहे थे चारपाए थीं लोमड़ियाँ ज़बाँ निकाले और लू से हिरन हुए थे काले चीतों को न थी शिकार की सुध हिरनों को न थी क़तार की सुध थे शेर पड़े कछार में सुस्त घड़ियाल थे रूद-बार में सुस्त ढोरों का हुआ था हाल पतला बैलों ने दिया था डाल कंधा भैंसों के लहू न था बदन में और दूध न था गऊ के थन में घोड़ों का छुटा था घास दाना था प्यास का उन पे ताज़ियाना गर्मी का लगा हुआ था भबका और अंस निकल रहा था सब का तूफ़ान थे आँधियों के बरपा उठता था बगूले पर बगूला आरे थे बदन पे लू के चलते शो'ले थे ज़मीन से निकलते थी आग का दे रही हवा काम था आग का नाम मुफ़्त बद-नाम रस्तों में सवार और पैदल सब धूप के हाथ से थे बेकल घोड़ों के न आगे उठते थे पाँव मिलती थी कहीं जो रूख की छाँव थी सब की निगाह सू-ए-अफ़्लाक पानी की जगह बरसती थी ख़ाक
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