हैं इस हवा में क्या क्या बरसात की बहारें सब्ज़ों की लहलहाहट बाग़ात की बहारें बूंदों की झमझमावट क़तरात की बहारें हर बात के तमाशे हर घात की बहारें क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें बादल हवा के ऊपर हो मस्त छा रहे हैं झड़ियों की मस्तियों से धूमें मचा रहे हैं पड़ते हैं पानी हर जा जल-थल बना रहे हैं गुलज़ार भीगते हैं सब्ज़े नहा रहे हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें मारे हैं मौज डाबर दरिया दौंड़ रहे हैं मोर-ओ-पपीहे कोयल क्या क्या रुमंड रहे हैं झड़ कर रही हैं झड़ियाँ नाले उमँड रहे हैं बरसे है मुँह झड़ा झड़ बादल घुमंड रहे हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें जंगल सब अपने तन पर हरियाली सज रहे हैं गुल फूल झाड़-बूटे कर अपनी धज रहे हैं बिजली चमक रही है बादल गरज रहे हैं अल्लाह के नक़ारे नौबत के बज रहे हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें बादल लगा टकोरें नौबत की गत लगावें झींगुर झंगार अपनी सुरनाइयाँ बजावें कर शोर मोर बगुले झड़ियों का मुँह बुलावें पी पी करें पपीहे मेंडक मलारें गावें क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें हर जा बिछा रहा है सब्ज़ा हरे बिछौने क़ुदरत के बिछ रहे हैं हर जा हरे बिछौने जंगलों में हो रहे हैं पैदा हरे बिछौने बिछवा दिए हैं हक़ ने क्या क्या हरे बिछौने क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें सब्ज़ों की लहलहाहट कुछ अब्र की सियाही और छा रही घटाएँ सुर्ख़ और सफ़ेद काही सब भीगते हैं घर घर ले माह-ता-ब-माही ये रंग कौन रंगे तेरे सिवा इलाही क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें क्या क्या रखे हैं यारब सामान तेरी क़ुदरत बदले है रंग क्या क्या हर आन तेरी क़ुदरत सब मस्त हो रहे पहचान तेरी क़ुदरत तीतर पुकारते हैं सुबहान तेरी क़ुदरत क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कोयल की कूक में भी तेरा ही नाम हैगा और मोर की ज़टल में तेरा पयाम हैगा ये रंग सौ मज़े का जो सुब्ह-ओ-शाम हैगा ये और का नहीं है तेरा ही काम हैगा क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें बोलीं बए बटेरें क़ुमरी पुकारे कू-कू पी पी करे पपीहा बगुले पुकारें तू-तू क्या हुदहुदों की हक़ हक़ क्या फ़ाख़्तों की हू-हू सब रट रहे हैं तुझ को क्या पँख क्या पखेरू क्या क्या मची हैं यारो बरसात की मारें जो मस्त हों इधर के कर शोर नाचते हैं प्यारे का नाम ले कर क्या ज़ोर नाचते हैं बादल हवा से कर कर घनघोर नाचते हैं मेंडक उछल रहे हैं और मोर नाचते हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें फूलों की सेज ऊपर सोते हैं कितने बन-बन सो हैं गुलाबी जोड़े फूलों के हार अबरन कितनों के घर है खाना सोना लगे है आँगन कोने में पड़ रही हैं सर मुँह लपेट सोगन क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें जो ख़ुश हैं वो ख़ुशी में काटे हैं रात सारी जो ग़म में हैं उन्हों पर गुज़रे है रात भारी सीनों से लग रही हैं जो हैं पिया की प्यारी छाती फटे है उन की जो हैं बिरह की मारी क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें जो वस्ल में हैं उन के जूड़े महक रहे हैं झूलों में झूलते हैं गहने झमक रहे हैं जो दुख में हैं सो उन के सीने फड़क रहे हैं आहें निकल रही हैं आँसू टपक रहे हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें अब बिरहनों के ऊपर है सख़्त बे-क़रारी हर बूँद मारती है सीने उपर कटारी बदली की देख सूरत कहती हैं बारी बारी है है न ली पिया ने अब के भी सुध हमारी क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें जब कोयल अपनी उन को आवाज़ है सुनाती सुनते ही ग़म को मारे छाती है उमंडी आती पी पी की धुन को सुन कर बे-कल हैं कहती जाती मत बोल ऐ पपीहे फटती है मेरी छाती क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें है जिन की सेज सूनी और ख़ाली चारपाई रो रो उन्हों ने हर-दम ये बात है सुनाई परदेसी ने हमारी अब के भी सुध भुलाई अब के भी छावनी जा परदेस में है छाई क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कितनों ने अपनी ग़म से अब है ये गत बनाई मैले कुचैले कपड़े आँखें भी डबडबाई ने घर में झूला डाला ने ओढ़नी रंगाई फूटा पड़ा है चूल्हा टूटी पड़ी कढ़ाई क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें गाती है गीत कोई झूले पे कर के फेरा मारो जी आज कीजिए याँ रैन का बसेरा है ख़ुश किसी को आ कर है दर्द-ओ-ग़म ने घेरा मुँह ज़र्द बाल बिखरे और आँखों में अँधेरा क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें और जिन को अब मुहय्या हुस्नों की ढेरियाँ हैं सुर्ख़ और सुनहरे कपड़े इशरत की घेरियाँ हैं महबूब दिलबरों की ज़ुल्फ़ें बिखेरियाँ हैं जुगनू चमक रहे हैं रातें अँधेरियाँ हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कितने तो भंग पी पी कपड़े भिगो रहे हैं बाहें गुलों में डाले झूलों में सो रहे हैं कितने बिरह के मारे सुध अपनी खो रहे हैं झूले की देख सूरत हर आन रो रहे हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें बैठे हैं कितने ख़ुश हो ऊँचे छुआ के बंगले पीते हैं मय के प्याले और देखते हैं जंगले कितने फिरे हैं बाहर ख़ूबाँ को अपने संग ले सब शाद हो रहे हैं उम्दा ग़रीब कंगले क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कितनों को महलों अंदर है ऐश का नज़ारा या साएबान सुथरा या बाँस का उसारा करता है सैर कोई कोठे का ले सहारा मुफ़्लिस भी कर रहा है पोले तले गुज़ारा क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें छत गिरने का किसी जा ग़ुल शोर हो रहा है दीवार का भी धड़का कुछ होश खो रहा है दर दर हवेली वाला हर आन रो रहा है मुफ़्लिस सो झोपड़े में दिल-शाद सो रहा है क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें मुद्दत से हो रहा है जिन का मकाँ पुराना उठ के है उन को मेंह में हर आन छत पे जाना कोई पुकारता है टुक मोरी खोल आना कोई कहे है चल भी क्यूँ हो गया दिवाना क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कोई पुकारता है लो ये मकान टपका गिरती है छत की मिट्टी और साएबान टपका छलनी हुई अटारी कोठा निदान टपका बाक़ी था इक उसारा सो वो भी आन टपका क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें ऊँचा मकान जिस का है पच खना सिवाया ऊपर का खन टपक कर जब पानी नीचे आया उस ने तो अपने घर में है शोर-ग़ुल मचाया मुफ़्लिस पुकारते हैं जाने हमारा क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें सब्ज़ों पे बीर भूटी टीलों उपर धतूरे पिस्सू से मच्छरों से रोए कोई बसोरे बिच्छू किसी को काटे कीड़ा किसी को घूरे आँगन में कनसलाई कोनों में खनखजूरे क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें फुँसी किसी के तन में सर पर किसी के फोड़े छाती ये गर्मी दाने और पीठ में दरोड़े खा पूरियाँ किसी को हैं लग रहे मरोड़े आते हैं दस्त जैसे दौड़ें इराक़ी घोड़े क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें पतली जहाँ किसी ने दाल और कढ़ी पकाई मक्खी ने वोहीं बोली आ ऊँट की बुलाई कोई पुकारता है क्यूँ ख़ैर तो है भाई ऐसे जो खाँसते हो क्या काली मिर्च खाई क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें जिस गुल-बदन के तन में पोशाक सौसनी है सो वो परी तो ख़ासी काली-घटा बनी है और जिस पे सुर्ख़ जोड़ा या ऊदी ओढ़नी है उस पर तो सब घुलावट बरसात की छनी है क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें बदनों में खब रहे हैं ख़ूबों के लाल जोड़े झमकें दिखा रहे हैं परियों के लाल जोड़े लहरें बना रहे हैं लड़कों के लाल जोड़े आँखों में चुभ रहे हैं प्यारों के लाल जोड़े क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें और जिस सनम के तन में जोड़ा है ज़ाफ़रानी गुलनार या गुलाबी या ज़र्द सुर्ख़ धानी कुछ हुस्न की चढ़ाई और कुछ नई जवानी झूलों में झूलते हैं ऊपर पड़े है पानी क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कोई तो झूलने में झूले की डोर छोड़े या साथियों में अपने पाँव से पाँव जोड़े बादल खड़े हैं सर पर बरसे हैं थोड़े थोड़े बूंदों में भीगते हैं लाल और गुलाबी जोड़े क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कितनों को हो रही है उस ऐश की निशानी सोते हैं साथ जिस के कहती है वो सियानी इस वक़्त तुम न जाओ ऐ मेरे यार-ए-जानी देखो तो किस मज़े से बरसे है आज पानी क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कितने शराब पी कर हो मस्त छक रहे हैं मय की गुलाबी आगे प्याले छलक रहे हैं होता है नाच घर घर घुंघरू झनक रहे हैं पड़ता है मेंह झड़ा-झड़ तबले खड़क रहे हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें हैं जिन के तन मुलाएम मैदे की जैसे लोई वो इस हवा में ख़ासी ओढ़े फिरे हैं लोई और जिन की मुफ़्लिसी ने शर्म-ओ-हया है खोई है उन के सर पे सर की या बोरिए की खोई क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कितने फिरे हैं ओढ़े पानी में सुर्ख़ पट्टू जो देख सुर्ख़ बदली होती है उन पे लट्टू कितनों की गाड़ी रथ हैं कितनों के घोड़े टट्टू जिस पास कुछ नहीं है वो हम सा है निखट्टू क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें जो इस हवा में यारो दौलत में कुछ बढ़े हैं है उन के सर पे छतरी हाथी पे वो चढ़े हैं हम से ग़रीब ग़ुरबा कीचड़ में गिर पड़े हैं हाथों में जूतियाँ हैं और पाएँचे चढ़े हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें है जिन कने मुहय्या पक्का पकाया खाना उन को पलंग पे बैठे झड़ियों का ख़त उड़ाना है जिन को अपने घर में याँ लोन तेल लाना है सर पे उन के पंखा या छाज है पुराना क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कितने ख़ुशी से बैठे खाते हैं ख़ुश महल में कितने चले हैं लेने बनिए से क़र्ज़ पल में काँधे पे दाल आटा हल्दी गिरह ने मल में हाथों में घी की प्याली और लकड़ियाँ बग़ल में क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें जो कस्बियाँ जवानें हुस्नों में पुर्तियाँ हैं सीनों में लाल अंगियाँ और लाल कुर्तियाँ हैं नज़रें भी बदलियाँ हैं दिल में भी सुर्तियाँ हैं इक इक निगह में काफ़िर बिजली की फुर्तियाँ हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें जो नौजवाँ हैं उन की तय्यारियाँ बड़ी हैं हाथों में लाल छड़ियाँ कोठों पे वो खड़ी हैं और वो जो आश्ना से झगड़ी हैं या लड़ी हैं मुँह को छुपा पलंग पर मचली हुई पड़ी हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कोई अपने आश्ना से कर नाज़ का झपट्टा कहती है हँस के काफ़िर चुटकी ले या निहट्टा तुम से तो दिल हमारा अब हो गया है खट्टा तुम आज भी न लाए रंगवा मिरा दुपट्टा क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कहती हैं कोई मुझ को जोड़ा सोहा बना दो या टाट बाफ़ी जूता या कफ़्श-ए-सुर्ख़ ला दो कोई कहे है मेरी कुर्ती अभी रंगा दो या गर्म से अंदरसे इक सैर भर मँगा दो क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें जो उन के मुब्तला हैं सब चीज़ ला रहे हैं कुर्ती बना रहे हैं अंगिया रंगा रहे हैं जो जो हैं उन की बातें सब कुछ उठा रहे हैं बाहें गले में डाले इशरत मना रहे हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कितनों ने क़ौल बाँधा मा'मूली दे के पैसे कहते हैं शाद हो कर यूँ अपने आश्ना से बरसात-भर तो मिल के सुनते हो जान प्यारे अहमक़ हो जो पलंग से अब मूतने को उतरे क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें ये सुन के उन से हँस हँस कहती है शोख़ रंडी मा'मूली अब तो ले कर बंदी भी है घमंडी हम पहनें लाल जोड़ा तुम पहनो ख़ासी बंडी ख़ंदी हो जो तुम्हारी छाती करे न ठंडी क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें ज़रदार की तो उन में है बिछ रही पलंगड़ी दिलबर परी सी बैठी झमकाए चूड़ी निबगड़ी मुफ़्लिस की टूटी पट्टी या टाट की झलंगड़ी रंडी मिली तो काली या कुंजी लूली लंगड़ी क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कुर्ती गुलाबी जिन में गोटे लगे हुए हैं अंगियाँ के गर्द झूटे गोटे टके हुए हैं कहती हैं उन से हंस हंस जो जो कटे हुए हैं ला अब तो मेरे तुझ पर बारह टके हुए हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें जो बेगमी है घर में आराम कर रही है पर्दों में दोस्तों से पैग़ाम कर रही है चितवन लगावटों से सौ दाम कर रही है चुपके ही चुपके अपना सब काम कर रही है क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कहता है कोई अपने महबूब सीम-बर से वो इस मेंह में न जाओ प्यारे हमारे बरसे कोई कहे है अपने दिलदार-ए-ख़ुश-नज़र से हाथों से मेरे जानी खा ले ये दो अंदरसे क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कहता है कोई प्यारी जो कुछ कहो सौ ला दें ज़र-दोज़ी टाट-बाफ़ी जूता कहो पहना दें पेङ़ा जलेबी लड्डू जो खाओ सो मँगा दें चीरा दुपट्टा जामा जैसा कहो रंगा दें क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें जिन दिलबरों के तन पर हैं गर्मी दाने आले कहते हैं उन को आशिक़ यूँ प्यार से बुला ले क्या मेंह बरस रहा है प्यारे ज़रा नहा ले छाती नहीं तो प्यारे टुक पीठ ही मिला ले क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें इस रुत में हैं जहाँ तक गुलज़ार भीगते हैं शहर-ओ-दयार कूचे बाज़ार भीगते हैं सहरा-ओ-झाड़ बूटे कोहसार भीगते हैं आशिक़ नहा रहे हैं दिलदार भीगते हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कहती है जब वो सुन कर ये बात भीग अहमक़ मारूँगी तेरे आ कर इक लात भीग अहमक़ मुझ को भी ज़िद चढ़ी है दिन-रात भीग अहमक़ यूँही तो अब के सारी बरसात भीग अहमक़ क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें ज़रदार की तो सुन कर आवाज़ वो परी-रू कहती है लौंडियों से जल्दी किवाड़ खोलो मुफ़्लिस कोई पुकारे तो इस से कहती है वो हरगिज़ कोई न बोलो अहमक़ को भीगने दो क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कोई यार से कहे है ऐ दिल-सितान आओ बदली बड़ी उठी है कहने को मान आओ क्या मेंह बरस रहा है हर इक मकान आओ रातें अँधेरियाँ हैं ऐ मेरी जान आओ क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कोई रात को पुकारे प्यारे मैं भीगती हूँ क्या तेरी उल्फ़तों के मारे मैं भीगती हूँ आई हूँ तेरी ख़ातिर आ रे मैं भीगती हूँ कुछ तो तरस तू मीरा खा रे मैं भीगती हूँ क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कोई पुकारती है दिल सख़्त भीगती हूँ काँपे है मेरी छाती यक-लख़्त भीगती हूँ कपड़े भी तर-ब-तर हैं और सख़्त भीगती हूँ जल्दी बुला ले मुझ को कम्बख़्त भीगती हूँ क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें शीशा कहीं गुलाबी बोतल झमक रही है राबील मोतिया की ख़ुश्बू महक रही है छाती से छाती लग कर इशरत छलक रही है पाए खटक रहे हैं पट्टी चटक रही है क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कोई पुकारती है क्या क्या मुझे भिगोया कोई पुकारती है कैसा मुझे भिगोया नाहक़ क़रार कर के झूटा मुझे भिगोया यूँ दूर से बुला कर अच्छा मुझे भिगोया क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें जिन दिलबरों की ख़ातिर भीगे हैं जिन के जोड़े वो देख उन की उल्फ़त होते हैं थोड़े थोड़े ले उन के भीगे कपड़े हाथों में धर निचोड़े चीरा कोई सुँघावे जामा कोई निचोड़े क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कीचड़ से हो रही है जिस जा ज़मीं फिसलनी मुश्किल हुई है वाँ से हर इक को राह चलनी फिसला जो पाँव पगड़ी मुश्किल है फिर संभलनी जोती गिरी तो वाँ से क्या ताब फिर निकली क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कितने तो कीचड़ों की दलदल में फँस रहे हैं कपड़े तमाम गंदी दलदल में बस रहे हैं कितने उठे हैं मरमर कितने उकस रहे हैं वो दुख में फँस रहे हैं और लोग हँस रहे हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें कहता है कोई गिर कर ये ऐ ख़ुदाए लीजो कोई डगमगा के हर-दम कहता है वाए लीजो कोई हाथ उठा पुकारे मुझ को भी हाए लीजो कोई शोर कर पुकारे गिरने न पाए लीजो क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें गिर कर किसी के कपड़े दलदल में हैं मोअ'त्तर फिसला कोई किसी का कीचड़ में मुँह गया भर इक दो नहीं फिसलते कुछ इस में आन अक्सर होते हैं सैकड़ों के सर नीचे पाँव ऊपर क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें ये रुत वो है कि जिस में ख़ुर्द-ओ-कबीर ख़ुश हैं अदना ग़रीब मुफ़्लिस शाह-ओ-वज़ीर ख़ुश हैं मा'शूक़ शाद-ओ-ख़ुर्रम आशिक़ असीर ख़ुश हैं जितने हैं अब जहाँ में सब ऐ 'नज़ीर' ख़ुश हैं क्या क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें