बादल गरज रहा है बिजली चमक रही है पुर-कैफ़ हैं फ़ज़ाएँ हर शय दमक रही है बाद-ए-ख़ुनुक चमन में बल खा के चल रही है बर्ग-ए-हिना की रंगत पहलू बदल रही है चेहरे पे यासियत के नूर-ए-शबाब छाया मख़मल का सब्ज़ क़ालीं फ़ितरत ने यूँ बिछाया मायूस हर शजर ने बदला लिबास अपना हर मुर्ग़-ए-ख़ुश-नवा ने छेड़ा नया तराना निकली सदा-ए-बुलबुल कोयल की कूक गूँजी चिड़ियों की चहचहाहट लुत्फ़-ए-हयात लाई तेज़ी में आ गई है दरियाओं की रवानी मैदान खेत बस्ती हर सम्त पानी पानी चश्मे उबल रहे हैं नहरें शबाब पर हैं नग़्मात-ए-नौजवानी चंग-ओ-रुबाब पर हैं फूलों से और फलों से शाख़-ए-शजर लदी है उश्शाक़ के दिलों में उलझन सी पड़ गई है सरसब्ज़ हो गया है वीरान सारा जंगल जंगल में मच गया है हर-सू ख़ुशी का मंगल ख़ुशबू-ए-जाँ-फ़ज़ा से हर जानवर मगन है उन के रग-ए-अमल में वो जोश मौजज़न है इनआम-ए-बे-बहा है क़ुदरत का ये नज़ारा 'साहिल' सुकून-ए-दिल है फ़ितरत का ये नज़ारा