भीगी हरी ओढ़नियाँ ओढ़े जूही चमेली चम्पा कामनी रस-भरी हवाओं के थपेड़ों से कपकपाती हैं घुप अँधेरे में जुगनुओं की बे-आवाज़ बूँदें टपकती हैं ब्याकुल रात ख़ामोशियों के संगीत में डूब गई है महकती साँसों के नम झोंके दबे पाँव भीतर आ कर बंद आँखों को हल्के से चूम लेते हैं लेकिन वो लजाती मुस्कुराती कली इधर का रस्ता भूल गई या अँधियारे की चादर तान कर वहीं कहीं बाहर बाग़ में सो गई