आँखें जब चमकाते हो जान को बस आ जाते हो कलियों को भी मुरझाते हो कितने गंदे बन जाते हो बस भई सूरज बस कुत्ता कैसा काँप रहा है ज़बाँ निकाले हाँप रहा है कोने में ख़ुद को ढाँप रहा है उस को कितना सताते हो बस भई सूरज बस सर को झुकाए चिड़ियाँ सारी धूप की मारी डर की मारी चुपकी बैठीं सब बे-चारी चिड़ियों को धमकाते हो बस भई सूरज बस बादल छाए मेंडक बोले आम की डाली रिम-झिम डोले दुनिया सारी आँखें खोले अब घर क्यूँ नहीं जाते हो बस भई सूरज