विसाल की राह से गुज़र कर फ़िराक़ का मोड़ आ गया है और अब यहाँ से उदास शामों सपाट रातों का सिलसिला है मगर अभी तक ये एक दिल है तो पीछे मुड़ मुड़ के देखता है सफ़र तो आगे को बढ़ रहा है मगर ये दुनिया तो दायरा है मुराजअ'त ऐन वाक़िआ' है हमीं ये देखेंगे सुब्ह-ए-फ़र्दा कि ताज़ा सूरज निकल रहा है फ़िराक़ की राह से गुज़र कर विसाल का मोड़ आ गया है