बे-ज़बान By Nazm << बे-मा'नी सुनो सहेली >> आज रोज़-ए-गिर्या है चमचमाती आँखों से इक जहान बरसेगा रोग दर्द और ये ग़म दरमियान बरसेगा मेरी बे-नवाई पर ख़ाक-दान बरसेगा और बे-गुनाही पर आसमान बरसेगा Share on: