आँख बोझल हुई ज़र्द पत्ते हवा में बिखरने लगे मैं तिरी सम्त आगे बढ़ा और फिर यूँ लगा जैसे यक-दम अंधेरा सा छाने लगा चार सू देखते देखते घुप अंधेरा हुआ मैं तुझे देखता रह गया तेरी तस्वीर जब देखते देखते घुप अंधेरे में खोने लगी तो बिना वक़्त ज़ाएअ' किए एहतियातन तुझे मैं भी अपने तसव्वुर की क़िर्तास पर इक पुराने ब्रश जो कि ख़ुद भी तसव्वुर की मेराज था को अजब बे-क़रारी में उजलत ज़दा हाथ में ले के माहिर मुसव्विर की मानिंद मलने लगा फिर कुछ ऐसा हुआ सब बदलने लगा देखते देखते घुप अँधेरा छटा और हर सू उजाला हुआ फिर तिरी सम्त नज़रें उठीं एक लम्हा तो माकूस क़िर्तास पर तेरे चेहरे पे ठहरी रहीं और फिर तेरी पेशानी के ठीक ऊपर तिरी माँग सीधी सड़क के मुशाबह तिरे गेसुओं से गुज़रती दिखी और फिर एक मुफ़्लिस ग़रीब-उल-वतन की तरह रौशनी से मुज़य्यन सड़क पर ख़िरामाँ ख़िरामाँ चला और फिर यूँ हुआ कि मुसाफ़िर घने गेसुओं में कहीं खो गया