घर में थी शादमानी इक जश्न-ए-कामरानी देखा जो ये तमाशा अम्मी से मैं ने पूछा अम्मी ये बात क्या है क्यूँ जश्न हो रहा है अम्मी ये हँस के बोली तू तो बड़ी है भोली तुझ को ख़बर नहीं है भय्या की कल है शादी आएगी तेरे घर में कल एक शाहज़ादी मैं जानती नहीं थी होती है क्या ये शादी इतना मगर पता था ये बात है ख़ुशी की सुनना था सिर्फ़ इतना मसरूर हो गई मैं फ़र्त-ए-ख़ुशी से फिर तो मग़रूर हो गई मैं कहती सहेलियों से भय्या की कल है शादी आएगी मेरे घर में कल एक शाहज़ादी आई जो घर में दुल्हन देखा उठा के चिलमन मुझ सी ही एक लड़की दुल्हन बनी हुई थी मैं ने जो नाम पूछा उस ने कहा कि भाभी