सड़क साफ़ सीधी है और धूप है दोपहर का सफ़र इक अकेली सड़क पैर-तस्मा-बपा यूँ चली जा रही है कि जैसे चली ही नहीं ईस्तादा है बस जैसे बे सर के धड़ और कटे पाँव के आदमी आदमी तुम भी हो आदमी मैं भी हूँ और तुम ने भरम रख लिया तुम ने अच्छा किया मेरी आँखों में झाँका नहीं वर्ना डर जाते तुम गहरे पानी के नीचे भी पानी था ऊपर भी पानी था और पानी में इक सुर्ख़ बे-जगह बे-वज्ह खुल गया था यूँही