बीच की लकीर By Nazm << आश्नाई का फ़रिश्ता क़हत >> सूरज के क़ातिल धूप सेंकने कहाँ जाएगी पाला मारी सारा बदन बदन जाएगा उन का भी जिन्हों ने बस तमाशा देखा कहा कुछ नहीं न सूरज से न अंधेरे से Share on: