कि शायद ख़िज़ाँ छू गई उसे आज ख़ामोश है चल के देखें कहीं आज फिर ज़ेर-ए-दिल एक मासूम ख़्वाहिश की शिद्दत फिर किसी अध-जले ख़्वाब की जुस्तुजू तो नहीं तितलियाँ सब्ज़-ओ-नीली सर-फिरे रक़्स-ओ-बू के जहाँ से कितनी मानूस-ओ-सरशार हैं और मैं अपने अच्छे ख़ुदा से कितनी बेज़ार हूँ थक गई हूँ चाँद तारों को छूने की ख़्वाहिश चोटियों तक पहुँचने की ख़्वाहिश एक बे-नग़्मा बे-साज़ वुसअ'त दिल धड़कने से भी हिचकिचाए सूरत-ए-दूद सा ये गुरेज़ाँ नीली तारीकियों से शगुफ़्ता क़हक़हे मारती मैं जो निकली मेरे ख़्वाबों के बेदार चेहरे सारे साहिल पे नौहा-ख़्वाँ हैं