ये प्यादे पिट चुके हैं सब तुम्हारे फ़ील और अस्प-ए-यज़ीदी ख़ाना-ब-ख़ाना परेशाँ पर्दा-ब-पर्दा पशेमाँ ला-ब-ला जा-ए-मफ़र की रह में सरगर्दां बिसात-ए-ख़ूँ-चकाँ पर रेत की दीवार निकला हर बहादुर और अब अतराफ़ में शह के कोई ख़ंदक़ है और न कोई दस्ता है हिफ़ाज़त का वज़ीर-ए-मोहतरम का ख़ाना ख़ाली है बिसात-ए-ख़ूँ-चकाँ पर हर बहादुर घुटने टेके अपने ख़ाने में परेशाँ सर झुकाए हाथ सीने से लगाए आलम-ए-हैरत से इक दूजे को तकता है तमाशाई खड़े चुप-चाप पत्थर लब लिए और साँस रोके बाज़ी-ए-शतरंज पर नज़रें जमाए महव-ए-मंज़र हैं ये मंज़र ख़ूब मंज़र है कि जिस में ना-तवाँ हाथों ने ज़ोर-आवर का नश्शा एक लम्हे में उतारा है ये प्यादे पिट चुके हैं और तुम्हारे फ़ील और अस्प-ए-यज़ीदी अब यहाँ सर-ब-गरेबाँ हैं वज़ीर-ए-मोहतरम का ख़ाना ख़ाली है बिसात-ए-ख़ूँ-चकाँ पर मात होने में बस इक ख़ाने की दूरी है