बरसात की बहारो मुझ को न अब सताओ जो ख़ुद ही मिट रहा है उस को न तुम मिटाओ ऐ मौसम-ए-निगाराँ ऐ अब्र-ए-नौ-बहाराँ ऐसे में याद उन की मुझ को न तुम दिलाओ बिछड़े हुए किसी से मुद्दत गुज़र चुकी है माज़ी के हादसों के क़िस्से न तुम सुनाओ बीते हुए दिनों की यादें भुला चुकी हूँ बीते हुए दिनों को फिर सामने न लाओ दिल में मचल मचल कर मायूस हो चुकी हैं इन हसरतों को आ कर तुम फिर न अब जगाओ अब जाम है न साक़ी इक तिश्नगी है बाक़ी तुम बज़्म में न आओ घिर घिर के ऐ घटाओ 'नाशाद' ज़िंदगी से बेज़ार हो रही है ऐ नित नई बहारो कलियों को गुदगुदाओ