बोल! अरी ओ धरती बोल! राज सिंघासन डाँवाडोल बादल बिजली रैन अँधयारी दुख की मारी प्रजा सारी बूढ़े बच्चे सब दुखिया हैं दुखिया नर हैं दुखिया नारी बस्ती बस्ती लूट मची है सब बनिए हैं सब ब्योपारी बोल! अरी ओ धरती बोल! राज सिंघासन डाँवाडोल कलजुग में जग के रखवाले चाँदी वाले सोने वाले देसी हों या परदेसी हों नीले पीले गोरे काले मक्खी भिंगे भिन भिन करते ढूँडे हैं मकड़ी के जाले बोल! अरी ओ धरती बोल! राज सिंघासन डाँवाडोल क्या अफ़रंगी क्या तातारी आँख बची और बर्छी मारी कब तक जनता की बेचैनी कब तक जनता की बे-ज़ारी कब तक सरमाया के धंदे कब तक ये सरमाया-दारी बोल! अरी ओ धरती बोल! राज सिंघासन डाँवाडोल नामी और मशहूर नहीं हम लेकिन क्या मज़दूर नहीं हम धोका और मज़दूरों को दें ऐसे तो मजबूर नहीं हम मंज़िल अपने पाँव के नीचे मंज़िल से अब दूर नहीं हम बोल! अरी ओ धरती बोल! राज सिंघासन डाँवाडोल बोल कि तेरी ख़िदमत की है बोल कि तेरा काम किया है बोल कि तेरे फल खाए हैं बोल कि तेरा दूध पिया है बोल कि हम ने हश्र उठाया बोल कि हम से हश्र उठा है बोल कि हम से जागी दुनिया बोल कि हम से जागी धरती बोल! अरी ओ धरती बोल! राज सिंघासन डाँवाडोल
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