बोसा By Nazm << बंद हवेली ऐ रुख़-ए-यार इधर देख ज़रा >> झील किनारा हब्स में डूबी बोझल भारी शाम तीन तरफ़ जंगल की ख़ुशबू चौथी खोंट तिलिस्म सात-दरा इक शहर कि जिस में सदियों बूढे भेद पहले दर का भेद हुआ इल्हाम अभी इस पल में हाथों से तन ढकती मूरत में आदम का जाया तू भी कुछ तो बोल तिरा क्या नाम अभी इस पल में Share on: