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आज इक अफ़सरों के हल्क़े में एक मातूब मातहत आया अपने अफ़्कार का हिसाब लिए अपने ईमान की किताब लिए मातहत की ज़ईफ़ आँखों में एक बुझती हुई ज़ेहानत थी अफ़सरों के लतीफ़ लहजे में क़हर था, ज़हर था, ख़िताबत थी ये हर इक दिन का वाक़िआ, उस दिन सिर्फ़ इस अहमियत का हामिल था कि शराफ़त के ज़ोम के बा-वस्फ़ मैं भी इन अफ़सरों में शामिल था
This is a great बुजदिल शायरी.