सियासत में कभी फ़िरक़ा-परस्ती चल नहीं सकती हुआ सूराख़ पेंदे में तो कश्ती चल नहीं सकती हमारे बीच हैं अब दुश्मन-ए-इंसानियत इतने ज़मीं पर अब फ़लक की चीरा-दस्ती चल नहीं सकती परेशानी बद-अमनी और महँगाई की हालत में हुकूमत चल तो सकती है गृहस्ती चल नहीं सकती बढ़ाऊँ दाम अपने क्यों न मैं ऐसी गिरानी में चलन जब है कि कोई चीज़ सस्ती चल नहीं सकती कहा नेता ने भूक-हड़ताल कर के दूसरे ही दिन अब इस से आगे मेरी फ़ाक़ा-मस्ती चल नहीं सकती नशा अब क्या चढ़े साक़ी ने जब ये कह दिया मुँह पर यहाँ हद से ज़ियादा बादा-मस्ती चल नहीं सकती ये सुन लो 'ख़्वाह-मख़ाह' जब साठ से हो जाओगे ऊपर मोहब्बत चल भी जाए तंदुरुस्ती चल नहीं सकती