चलो हम मान लेते हैं बिछड़ना ही ज़रूरी है चलो हम मान लेते हैं मुक़द्दर में ही दूरी है चलो हम मान लेते हैं तुम्हारी जो है मजबूरी चलो हम मान लेते हैं मिले हम देर से तुम से चलो माना कि बाँधे है रसन हालात की तुम को चलो माना जुदाई के सिवा चारा नहीं कोई मगर इतना बता दो बस जुदा होने से ऐ हमदम तअ'ल्लुक़ टूट जाएगा हमें तुम भूल जाओगे मोहब्बत और रिफ़ाक़त के वो सारे दिन वो सब लम्हे तुम्हारे ज़ेहन और दिल से निकल जाएँगे मुमकिन है अगर मुमकिन नहीं है तो जुदा होने का क्या मतलब बिछड़ जाने का ग़म कैसा ये नाले और फ़ुग़ाँ क्यूँ हैं हम इतने बे-कराँ क्यूँ हैं