तुम्हें ख़्वाहिश को छूने की तमन्ना है ख़्वाहिशें तो उड़ती-फिरती तितलियाँ हैं डाक की नाकारा टिकटें तो नहीं हैं जिन्हें एल्बम में रख कर तुम ये समझो कि ये नायाब चीज़ें अब तुम्हारी दस्तरस में हैं तुम्हें सपने पकड़ने की तमन्ना है नहीं ये ग़ैर-मुमकिन है कि सपने अन-छुए लम्हों के नाज़ुक अक्स हैं आराइशी बेलें नहीं जो कमरे की किसी दीवार पर सज कर तुम्हारी दीद का एहसाँ उठाएँ तुम्हें कोहरे के भीगे फूल चुनने की तमन्ना है ये कोहरा तो चराग़-ए-मौसम-ए-गुल का धुआँ है कोई दीवार-ए-बर्लिन पर खिंची तहरीर या नक़्शा नहीं जिसे जिस वक़्त जो चाहे बदल दे या मिटा दे सब्ज़-रू कोहरा पकड़ना इस क़दर आसाँ नहीं सुनो दीवानगी छोड़ो चलो वापस हक़ीक़त में चलें
This is a great दिल टूटा हुआ शायरी.