उख़ुव्वत के परस्तारों की इक रंगीन दुनिया थी हरीम-ए-नूरू-ओ-नग़्मा बज़्म-ए-नाहीद-ओ-सुरय्या थी वो दुनिया शम-ए-आज़ादी के परवानों की बस्ती थी जहाँ फ़ितरत सँवरती थी जहाँ मस्ती बरसती थी वो दुनिया ज़िंदगी के फूल बरसाती हुई दुनिया मुलाएम नुज़हतों की रक़्स फ़रमाती हुई दुनिया जहाँ इक साँस भी लेने से घबराते थे हंगामे जलाल-ए-बे-अमाँ से डर के सो जाते थे हंगामे वो दुनिया रश्क-ए-फ़िर्दोस-ए-बरीं मा'लूम होती थी ख़ुदा का शाहकार-ए-बेहतरीं मा'लूम होती थी जहाँ इश्क़-ओ-जुनूँ हुस्न-ओ-वफ़ा की राजधानी थी मोहब्बत मसनद-आरा थी मोहब्बत पुर-जवानी थी जहाँ ईसार-ओ-ख़ुद्दारी के परचम लहलहाते थे जहाँ मा'सूम बच्चे मौत से आँखें लड़ाते थे मुसलसल बादा-ए-आसूदगी के दौर चलते थे लहू से परवरिश पाए हुए अरमाँ निकलते थे अदू जिस का ख़राब-ए-ग़म शिकार-ए-ना-मुरादी था हर इक साहिल-नशीं जाँ-सोज़ तूफ़ानों का आदी था वही गुलशन अब इक वीराना-ए-आबाद है गोया ग़िलाफ़-ए-साज़ में लिपटी हुई फ़रियाद है गोया अभी क़िले की दीवारों में वो अनवार बाक़ी हैं तिरे ज़ौक़-ए-तपिश के मुज़्महिल आसार बाक़ी हैं ये दीवारें तिरी जुरअत का अफ़्साना सुनाती हैं हनूज़ उस में हिमाला की अदाएँ पाई जाती हैं हनूज़ इन सरफ़रोशों के तराने हैं फ़ज़ाओं में तिरी आवाज़-ए-पा महफ़ूज़ है अब तक हवाओं में दिल-ए-वीराँ को मुद्दत से है तेरा इंतिज़ार आ जा ख़ुदारा ऐ बहादुर इंक़िलाबी शहसवार आ जा