चाँद-रात By Nazm << अपने बदन का ख़ौफ़ आख़िरी रात >> रात की हवेली से चाँद जब निकलता है आँख के दरीचे से आरज़ू महकती है रौशनी मोहब्बत की चार-सू बिखरती है जिस्म के जज़ीरे पर रत-जगा उतरता है रेज़ा रेज़ा करता है Share on: